गरीब हैं लापरवाह नहीं
गरीब हैं लापरवाह नहीं
हम लोग गरीब हैं पर नहीं लापरवाह
अपनी ही नहीं हमें सबकी है परवाह।
भरपेट खाना नहीं पूरे कपड़े भी नहीं।
कम है इस बात का हमें गम नहीं
माँगने की हमें कोई भी चाह नहीं।
उजला मन हमारा, उसमें कोई खोट नहीं।
भले ही कम खाते हैं इसका गम नहीं
खुशियाँ बाँटते हैं लोगों में, गम नहीं।
चाहत नहीं हमें महल और हवेली की
जिंदगी में सुकून है अपनी झोपड़ी की।
हम समय के साथ चलना जानते हैं
कम खर्चे में गुजारा कर लेते हैं।
महंगे मास्क खरीद न सके तो क्या हुआ
पत्तों से हम बचकर औरों को बचाते हैं।
सिर्फ अधिकार ही नहीं, कर्तव्यों का भी
ज्ञान है हमें, जिम्मेदारी निभाते हैं सभी।
चाहे कितनी विपदा आएँ पास हमारे
डटकर मुकाबला करें हिम्मत के सहारे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़