गरीब की चाहत.!
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आजादी का डंका तेज गुंजना था!
सबको सुनाई देना था।
देश को आजादी मिली,
काफ़ी बरस बीत गये!
अब तक तो भारत को-
नम्बर वन पर होना था!
दुनिया में भारत को चमकना था।
देश की बड़ी हस्तियों ने-
अपने अधीनस्थ करली!
मेरे भारत की आजादी!
इस आजादी का स्वाद तो-
देश के हर नागरिक को चखना था।
गरीब की भी चाहत थी!
खुली हवा में सांस लेना!
आजादी का स्वाद लेना!
पर इनके भाग्य में कहा-
ऐसा सुकून मिलना था!
इने अपनों की भी गुलामी करना था।
ये कैसी आजादी मिली है!
गरीब! गरीबी की खाई से-
बाहर निकल नहीं पा रहा!
कब होगा,गरीब का उत्थान.?
इन गरीब का उत्थान भी तो करना था।
क्या देश से गरीबी जाएगी.?
या देश में स्थाई रह जाएगी.?
पहले गरीब की सोचना था!
गरीब भी स्वतंत्र कहलाता!
इस मुद्दे पर चर्चा तो करना था!
इन गरीब की चाहत को पूर्ण करना था।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल===
=*उज्जैन*मध्यप्रदेश*{भारत}*====
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