गरीब की आरजू
गरीब की आरजू दो वक्त रोटी होती हैं।
जीवन और समाज की सोच होती हैं।
हम सभी के साथ दुआएं करते हैं।
आप सभी का सहयोग मिलेगा सोचते हैं।
सच गरीब की आरजू बस यही एक रहतीं हैं।
आज वक्त सहयोग जो करता हम तुम हैं।
कर्म और किस्मत का लेखा जोखा होता हैं।
सच तो यही गरीब की आरजू में रब होता हैं।
हां सच तो यही गरीब की आरजू की सीमा होती हैं।
हमारी लालसाएं और हकीकत कुछ नहीं होती हैं।
आओ जीवन का मर्म को समझते चलतें हैं।
गरीब की आरजू की सोच को समझते हैं।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र