गरीब आदमी हूं
सुबह में उठकर काम हो जाता
शाम को थक कर घर पर आता
फिर भी मुस्कुराता हूं
गरीब आदमी हूं साहब
गिर कर संभल जाता हूं !!
महल का सपना देखता
अपनी मढ़ैया में
चैन से सोते होंगे
वे लोग रजैया में
ठंडी हवा चले तो
कांप मैं जाता हूं !!
औकात क्या है मेरी
सब दिखाते हैं
इसी के वास्ते
काम पर बुलाते हैं
रोजी रोटी खातिर चला जाता हूं !!
रोज कमाता हूं रोज खाता हूं
जिस दिन काम मिले ना बड़ा घबराता हूं
सबको खुश रखना ए खुदा
यहीं दुहराता हूं
गरीब आदमी हूं साहब
गिर कर संभल जाता हूं !!
सुनिल गोस्वामी