गरीब-अमीर
” माँ , देखो आज मेरे साथ कौन आया है ? ”
चहकते हुए सरिता ने कहा
“कौन आया है बेटी , बड़ी खुश दिख रही है ।”
सरिता की माँ रमा ने पूछा ।
” माँ मेरी सहेली रीता आई है ।”
“ओह बड़ी खुशी की बात है , तू उसे पानी बगैरह दे मैं तब तक गरमागरम पराठे बनाती हूँ दोनो मिल कर खा लेना , दिन भर तो हो जाता है स्कूल में थक जाती होगी ।”
रमा ने कहा । तभी उसकी निगाह दरवाज़े पर खड़ी कार की तरफ गयी, लम्बी महंगी कार थी । तब सरिता ने बताया:
” माँ रीता इसी कार में स्कूल आती है ।”
रमा का दिल एक बार को फीका सा हो गया , वही अमीर लोग । लेकिन उसके लिए दोनों बेटियाँ बराबर थी इसलिए बिना पूर्वाग्रह के वह प्यार से दोंनो पराठे खिलाने लगी ।
सरिता के पिता का दुर्घटना में देहान्त हो गया था और उन्हीं की जगह रमा को बाबू की नौकरी मिल
गयी थी ।
अब कभी कभी रीता आ जाती और रमा प्यार से नयी नयी चीजें बना कर खिलाती रहती ।
एक दिन रीता ज़िद करके सरिता को साथ ले कर अपने घर ले गयी और अपनी माँ सोनिया से मिलवाया । सोनिया ने एक निगाह सरिता पर डाल कर उसका मुआयना किया कि यह कितने अमीर घर की बेटी है ।
फिर रूखी निगाह डालते हुए रीना को अंदर बुलाया और डांटते कहा, जिसकी आवाज बाहर भी आ रही थी :
” तूझे कितनी बार समझाया है सहेली बराबर वालों को बनाया कर , ये लोग हमारी बराबरी के नहीं हैं। ”
रीना जब बाहर आई तब उसका चेहरा उतरा हुआ
था , वह बालमन से सोच रही थी :
” एक वो भी माँ है जो कितने प्यार अपनी बेटी के साथ दूसरे की बेटी को भी खिला रही थी और एक मेरी माँ है जो दूसरे की बेटी तो दूर की बात है अपनी बेटी को भी प्यार करने ताजा गरम खिलाने के लिए समय नही है ।”
रीता कुछ कहती सरिता अपना स्कूल बेग उठा कर बाहर आ गयी , और रोते हुए पूरी बात माँ को बताई ।
रमा ने कहा :
” बेटी दिल छोटा मत कर वो लोग पैसो से अमीर हो कर भी दिल से गरीब हैं और हम लोग पैसों से गरीब होने पर भी दिल से अमीर हैं, लेकिन बेटी दोस्ती में गरीबी – अमीरों नहीं होती अगर इसके बाद भी रीता अपना दोस्ती का हाथ आगे बढाये तो पीछे मत करना और रीता बेटी को अपने घर लाते रहना
अच्छा लगेगा । ”
सरिता सब समझ गयी और अपने मन से रीता के लिए आई दुर्भावना को एक झटके से दूर कर दिया ।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव