गरीबों को कैसे मिलेंगे निवाले।
गज़ल
काफ़िया- आले की बंदिश
रदध- गैर मुरद्दफ़
122……122……122……122
है महगाई इतनी कि खाने के लाले।
गरीबों को कैसे मिलेंगे निवाले।
तपिश धूप सर्दी बदन टूटता है,
खुदा देखता है वो पावों के छाले।
गई आई कितनी दिवाली न जाने,
रहे जिंदगी में अँधेरे ही काले।
खुशी गैर की जिंदगी में भी आए,
जो बाँटे तु अपने ज़रा से उजाले।
खुशी हो तो बांटो सभी को हमेशा,
अकेले में अपने गमों को छुपाले।
न कल की फिकर में दुखी आज हो तू,
अभी जिंदगी का तु खुलकर मज़ा ले।
ये हुस्नोअदा में फँसा मेरा दिल है,
बता हुस्न दिल कोई कैसे संभाले।
करो प्यार सबसे जहाँ तक हो मुमकिन,
कि प्रेमी बनो सबको अपना बना लो।
……✍️ प्रेमी