गरीबी
गरीबी पर कविता
गरीबी मन का वहम है
जो कर्म का रहम है ।
जो देखी नही कभी भी गरीबी
वो क्या जाने दर्द की करीबी ।
धनवान को कांटा चुभे तो सारे शहर को होती है खबर ,,
निर्धन को बिछु, सांप काटे तो नही होती किसी को खबर।
नोट नोट छप्पे बना भारी रोकड़ी ,,
चावल का दाना नही ,हिल रही गरीब की झोपड़ी ।
तन पर फटा वस्त्र ,पाँव में टूटी चप्पल , मुह में सुंदर सी मुस्कान ,गरीब का पहना ,,
छुपे गम में भी उसका ही गहना ।
गरीबी के दस्तक पर दरवाजे से प्रेम नही उमड़ता है,,
दरवाजे से ही कोई जनाब मुह फेर लेता है ।
सेठ की शान कों देखकर कोई
अपनी बेटी दे देता है ,,
निर्धन कन्या का प्रेमी बहुत लेकिन पति कोई नही मिल पाता है ।
गरीब ,कमजोर पर किसी का जोर चलने लगता है ,,
अमीरी की बजाइ धुन पर गरीब नाचने लगता है ।
हम खाते है अकेलेऔर बाटते नही ,इसलिए गरीबी आत्ती है ,
कृष्ण सगा को छोड़कर सुदामा ने बचपन में खाए चने अकेले तब उसको गरीबी समझ आत्ती है ।
जब बड़े हुए सुदामा तब लेकर गए सगा के खाने के लिए चावल ,,
तब बन गया था सुदामा का महल ।
इसलिए प्रवीण कहे रखो घर में बरकत ,,
नही कर पाएगी कभी भी गरीबी हरकत ।
✍✍प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम।
टी एल एम् ग्रुप संचालक
स्वरचित कापीराइट
कविता ।