गरीबी ~
माँ-माँ की बालक ने,
जो आवाज़ लगाई थी।
सुनकर माता भागी-भागी ,
बालक के पास आई थी।
दयनीय आँखों से जो, बालक ने माँ की ओर देखा था।
उसे उठाया गोदी में,माँ ने स्वप्नों को दूर फेंका था।
अपने आँचल में उसे छुपाया,
बालक ने भी आंसुओ को खूब बहाया।
पोंछकर आंसुओं को बालक बोला-
“माँ मुझको भूख लगी है,
देख न तेरे लाल की जान सूख रही है।”
सुन बालक की बात माँ ने जब ,
वस्त्रों की पोटली खोली,
उसमे हाथ से कुछ देर टटोली,
न निकला उसमे से जब कोई पैसा,
बोली-“हाए! ये निर्मम जीवन कैसा?
बालक मेरा तड़प रहा है भूख के मारे ,
ईश्वर! इस बालक पर कुछ तो दया विचारे।”
निकली ‘आह’ बालक के मुख से,
उससे न रहा गया था।
उस नन्हे बालक से अब ,
भूख को न सहा गया था।
अब माँ बालक को घर पर,
छोड़,निकल पड़ी थी।
बड़ी देर ठोकर खाकर,
एक रोटी जब मिली थी।
घर आकर माँ ने बालक को,
जब गोदी में उठाया था,
निकली चीख उसके मुख से,
अपने लाल को मृत पाया था।
ये देख मैं न रह पाया,आखिर खुदा से पूछ लिया-
“या खुदा!क्या हर निर्धन बचपन को,
जीवन की इस मार को सहना पड़ेगा?
क्या फूलों के स्थान पर,
बबूल की सेज पर रहना पड़ेगा?”
खुदा बोले-
“अगर अमीर हुआ,
दुनिया में हर रहने वाला।
फिर न होगा दुनिया में,
कोई खुदा कहने वाला।”
•©ऋषि सिंह “गूंज”