गरीबी पर लिखे अशआर
सारे इलज़ाम इसके माथे पर ,
मुफ़लिसी बे’ गुनाह नहीं होती ।
कोई हमदर्द हो गरीबी का ,
कोई सिल दे लिबास गुरबत का ।
वो हक़ीक़त पसंद होती है ,
मुफ़लिसी ख़्वाब थोड़ी देखेगी ।
राहतें ज़िंदगी को मिल जाती ,
भूख बे’हिस अगर नहीं होती ।
बात अच्छी है बस अमीरी की ,
तुम गरीबी का ज़िक्र मत करना ।
कोई गुरबत समझ नहीं सकता,
भूख हिम्मत निचोड़ देती है ।
डाॅ○फ़ौज़िया नसीम शाद