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21 Jan 2022 · 1 min read

गरजते ये बादल

आज काले बादल यूँ गर्जना कर रहे है
नाराज से हैं वो कुछ वर्जना कर रहे हैं

यूँ बेवक्त उनका आना कुछ तो बात होगी
बहती हवा नें शायद कुछ बात कही होगी

गर्जना पहले नगाड़े की थाप लगती थी
चमकती दामिनी नर्तकी सी दिखती थी

हरियाली के आंगन जश्न हुआ करता था
खुश थी प्रकृति ना प्रश्न हुआ करता था

मानव बना निरंकुश तो प्रकृति रो रही है
है स्वार्थ का नतीजा अनहोनी घट रही है

है संकेत बादलों का, माना ना जो कहना
शुरुआत है अभी ये आगे है बहुत सहना

स्वरचित/मौलिक
सूर्येन्दु मिश्र ‘सूर्य’
21/01/2022

Language: Hindi
2 Likes · 334 Views

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