गया साल
गया साल
हर ले गया
कुछ झूठी
उम्मीदो की आस
जीवन का रास
छोड़ गया
इक गहरा सागर
शब्दों का
शायद सुहास
इक महारास
एक समर्पण
निर्मल अर्पण
गहरे समंदर में
अब प्रवास
बस यही इक आस
गया साल
हर ले गया
कुछ झूठी
उम्मीदो की आस
जीवन का रास
छोड़ गया
इक गहरा सागर
शब्दों का
शायद सुहास
इक महारास
एक समर्पण
निर्मल अर्पण
गहरे समंदर में
अब प्रवास
बस यही इक आस