गम व खुशी
खुद से बहस करोगे
तो हल निकल ही जायेगा
दावा है कि गम भी
खुशी में बदल जायेगा।
दूसरे से किये गए बहस
बस नये सवाल पैदा करता है
खुशी की तलाश में भटकते
व्यक्ति में दुविधा उत्पन्न करता है।
बेशक गम के दिन भी
एक दिन निकल ही जायेंगे
खुशियों के सागर में गोता
लगाने के दिन भी आएंगे।
न कभी सदा खुशी रहती है
न कभी हरदम गम
अवसाद के दिन भी गुजर जाते है
जी धैर्य न खोये जो हम।
जब हम अपनी गलतियो
के वकील बन जाते है
सच कभी भी सही
फैसले चाह कर नही आते है।
वैसे ही दूसरों की गलतियों पर
निर्मेश जज बनने से बचे
अपनी मर्यादा में ही रहकर
हर फैसला करें।
निर्मेश