गम पी कर मुस्कराते हैं
***गम को पी कर मुस्कराते हैं***
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दर्द सह कर सदा गुनगनाते हैं,
गम को पी कर भी मुस्कराते हैं।
बयाँ हम क्या करें कोई बात नहीं,
बस दिल ही दिल मे तिलमलाते हैं।
शिकवे, शिकायतों से है क्या लेना,
तन्हाई में खुद से बतियाते हैं।
रंज उनसे दूर जाने का नहीं,
बस बदकिस्मती पर पछताते हैं।
नीर आँखों से निकलता रहता हैं,
बहे अश्कों को रहें छुपाते हैं।
गीत जीवन का नहीं गा सके हम,
बिना सुर लय के फिरते गाते हैं।
हुई क्या खता हमें मालूम नहीं,
बिना किए की ही सजा पाते हैं।
मनसीरत जग को ना समझ पाया,
दुनिया भर से नजरें झुकातें हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)