गम पी कर मुस्कराता रहा
**गम पी कर मुस्कराता रहा**
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खुद को उम्र भर मैं जलाता रहा,
गम पी कर सदा मुस्कराता रहा।
रात भर जुदाई में रोता रहा,
आँसुओं का दरिया बहाता रहा।
ख्वाहिशें मेरी दम तोड़ती रही,
जीत कर भी सदैव हारता रहा।
अपनों में है हाल बेगानों सा,
निज गृह मे चोरी झाँकता रहा।
शैतानों की बस्ती में लूट गया,
कष्ट सह के खुशियाँ बाँटता रहा।
सोचता ही रहा न कुछ कह पाया,
अरमानों को दिल में दबाता रहा।
बातों ही बातों में बातें बिगड़ी,
निज की करनी पर पछताता रहा।
मनसीरत राह में भटकता रहा,
तराने तन्हाई में गाता रहा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)