गम-ए-बरसात फिर से होने वाली है
वो काली रात फिर से आने वाली हैं
गम-ए-बरसात फिर से होने वाली है
बमुश्किल से सहा था उन लम्हों को
खुदा द्वारा दिए उन जीवन रंगों को
बदरंग हो चुके थे वो खुशनुमा पल
वो मुश्किलात फिर से आने वाली है
बहुत मुश्किल से संभाला है खुद को
शिद्दत से चाहा था हमने उस परी को
उसी शिद्दत से भूल चुके अब उनको
वही जज्बाती रात फिर आने वाली है
कसूर क्या था,समझे नहीं हैं अब तक
छोड़ क्यों गए,नहीं जानते हैं अब तक
दरिया दरमियान हमें छोड़ दिया था
वही दुखांत रात फिर से आने वाली है
रक्कास भांति खूब नचाया है हमको
बेवफाई में बहुत ही रुलाया है हमको
खसलतों से अपनी सताया है हमको
जफाओं भरी रात फिर आने वाली है
सब्र बाँध के अब जीना सीख लिया है
चाहत को मारके रहना सीख लिया है
आँसुओं बिन अब रोना सीख लिया है
अब वो काली रात क्यों आने वाली है
वो काली रात फिर से आने वाली है
गम- ए-बरसात फिर से होने वाली है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत