गम को भुलाया जाए
ग़ज़ल
साथ कुछ आज चलो वक्त बिताया जाए
अब घड़ी भर के लिए गम को भुलाया जाए
हार माने जो किनारे ही रहे दरिया के
ज़िंदगी इक है समर पाठ पढ़ाया जाए
रोशनी को जो तरसते ही रहे उनके भी
आशियानों में दिया चल के जलाया जाए
भ्रष्ट जो तंत्र हुआ लूट रहे घर अपने
अब जरूरी है कि हर शक्स जगाया जाए
हौसले टूट रहे जिनके धरा पे दिन-दिन
पंख देकर भी सुधा उनको उड़ाया जाए
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
15/1/2023
वाराणसी,©®