गम के बादल गये, आया मधुमास है।
गीत
गम के बादल गये, आया मधुमास है,
फिर ये चुपचाप रहने से क्या फायदा।
रंग औ’र अंग अब तो लगाओ प्रिये,
ऐसे होली मनाने से क्या फायदा। ……….गम के बादल
तुमसे ही मेरा तन मन हृदय जान है।
बीते सालों में देखी न मुस्कान है।
तुम जो मुस्काओगी फूल खिल जायेंगे।
फूलों पर फिर से भौंरे मचल जायेंगे।
आ गई है बसंती बहारें यहां,
फिर खिजां को बुलाने से क्या फायदा।…..गम के बादल गये
तीज त्यौहार खुशियों को खोया बहुत।
खो के मुस्कान बच्चों की रोया बहुत।
कितनी जिद से खिलौने मंगाए थे जो,
अब तलक भी कहां खेल पाए हैं वो।
खेलने दो सभी को ये दिल खोलकर,
रंग में भंग करने से क्या फायदा।……….गम के बादल गये
ठंडी ठंडी बसंती पवन चल रही।
गंध मादक हृदय को विकल कर रही।
अब तो मुमकिन न होगा ये रूकना मेरा।
लो ये तन मन हृदय रॅंग दिया सब तेरा।
रॅंग दिए गाल ‘प्रेमी’ गुलाबी तेरे।
बिन रॅंगे घर भी जाने से क्या फायदा।….गम के बादल गये
…….✍️ सत्य कुमार प्रेमी
स्वरचित एवं मौलिक।