गम और खुशी।
गम ही खुशी का बीज है .पर समझ नहीं पाता है।गम के कारण ही सृजन साहित्य का जो जग पढ़ पाता है।।जब खुशी मिल जाती है तब जाता अपने को भूल ।फिर अकेला होकर बन जाता पृतिकूल।।गमो के गहरे जखमो से ही सारी खुशी का विस्तार है।बिना गमके सूना खुशी का सनसार है।।गम को दुख न समझ यह समझ का फेर है। समय के अनुसार होता है बस कुछ ही देर है। सृष्टि की रचना भी जोड़े से होती है। गम और खुशी हुई समय के साथ होती है।