गमले का पौधा
मेरा विराट रूप अब हो गया है सूक्ष्म
जब से लाए हो तुम मुझे उठाकर ,
मेरा बड़ा था एक परिवार
जहां खुशियां मिलती थी चारो ओर
हवा मिलती थी सुंदर और
पानी भी कितना स्वच्छ था ,
खाद्य की हमको चिंता नही रहती
सब मिलता था अपने आप ,
तूने जो मुझे कैद किया
मेरी परिधि छोटी हो गई ,
वहाँ अगर मैं रहता
बड़ा भला करता जग को,
खुश करता खुश रहता भी ,
यहाँ तो मुझे प्यास मिटाने के लिए
सुबह-शाम का इंतजार है,
देखना पड़ता है कि कब दिवाकर
को जल चढ़े कि हमारा कंठ भींग जाए ,
बड़ी सोच छोटी हो गई है इंसा ,
तुम्हारा बस चले तो अनिल को भी बांध देते
मैं उठता नही था
बैठा रहता था जड़ें जमाए ,
पर तुम उठाकर रखते हो
कभी यहाँ तो कभी वहाँ ,
और काट देते हो मेरी जड़ें
यह कहकर कि छत में दरारें हो रही है,
मैं पूछता हूं क्यूं लाते हो
फिर इस गमले में मुझे,
जब बढ़ने ही नही देते हो
क्या तुम्हारा यह शौक है , मुझे सताना दुख देना
जो स्वतंत्र है उसे परतंत्र बनाना ।
साहिल की कलम किसी की परिधि को छोटा नही करता ……