गफलत।
बंद कर दिए थे दरवाज़े सारे,
छोड़ी ना मिलने की सूरत कहीं,
जब रहना चाहिए था संपर्क में मेरे,
तब थी मिलने की फुर्सत नहीं,
ज़िंदगी तो आगे बढ़ती गई पर,
रह गई गफलत वहीं की वहीं,
विनम्रता ही पाओगे हमेशा मुझे से,
कि दिल दुखाना मेरी फितरत नहीं,
पर क्यों देते अब अतीत पे दस्तक,
जब मुझे इसकी कोई ज़रूरत नहीं,
वक्त रहते मिटा दो अहंकार का अंधेरा,
कि वक्त देता किसी को मोहलत नहीं।
कवि –अम्बर श्रीवास्तव।
गफलत–गलतफहमी।