गन्ना जी ! गन्ना जी !
गन्ना जी ! गन्ना जी ! ,
मिठास ह्रदय में भरना जी,
रेशे – रेशे में रस है ,
चूस-चूस कर खाते है,
दांँत अगर मजबूत न हो,
चरखी के मध्य दबाते है,
बूँद-बूँद निचोड़ कर,
जूस का लुफ्त उठाते है ।
गन्ना जी ! गन्ना जी ! ,
खुशी की मिठास भरना जी,
बनते गुड़ और शक्कर,
रस होता इतना खास ,
दिखते हो बॉस की भाती,
पोर-पोर बढ़ते हो,
छिल्के तक सुखाते है,
भट्टी में जलाते है ।
गन्ना जी ! गन्ना जी !,
हर मिष्ठान की जड़ हो तुम,
हर खुशी में तुम्हारी ही मिठास होती है,
खुद को समर्पित कर देते हो,
रग-रग में घोलते हो प्यार,
खेतों में उगते हो,
लंबे और ऊंचे डंडे के समान,
होती है तुम्हारी पहचान ।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।