गन्नावाला
दीपावली पर ईख बेचने आया शहर किसान ।
कन्धे पर रख कर ढ़ोने से निकल रही थी उसकी जान।।
चालीस का था बेच रहा वह गली गली हर द्वार ।
इतने में ही आ धमका था स्थानीय एक ठेकेदार ।।
बीस रुपय्या प्रति गन्ने से लगा माँगने कर व्यापार ।
आधी दर पर कहा बेच कर जायेगी मेहनत बेकार ।।
धौंस जमाया ठेकेदार ने यह नहीं तुम्हारा घर है।
नगर क्षेत्र में वही बेचता जिसका निर्मित प्राधिकार है।।
इतना कह कर जेब में उसके पैसा जबरन ठूँस दिया ।
कंधे से उतार ईख को लेकर निज दुकान रख लिया ।।
बेच रहा है बैठ ठाठ से प्रति पचास के भाव।
मन मसोस कर गन्ना वाला चला जा रहा है निज गांव ।।
मोती प्रसाद साहू