गधों की दौड़,,,,,,,,,,
वैशाख हो या सावन,
भिखारी हो या बामन,
निर्धन हो या धनवान,
औरत हो या इंसान।
सब लगा रहे दौड़।।
अपनी अपनी ढपली बजाने की होड़,
स्वार्थ सिद्धि की जोड़-तोड़, कुर्सी की लगी होड़।
योग्यता का ना ध्यान,
होनी अनहोनी का ना ज्ञान।
अफरा तफरी की दौड़,
गधे सड़क पर लगाते दौड़।
चाहे दुनिया हो घायल,
ज़ख्म पर ना लगाते मलहम।
नारायण अहिरवार
अंशु कवि
सेमरी हरचंद होशंगाबाद
मध्य प्रदेश