गधों की चिंता करना छोड़ें, अपने बारे में ही सोचें कुरड़ी पर लौटे बिना, उन्हें स्वाद थोड़े न आएगा..
सुशील कुमार ‘नवीन’
दो दिन पहले सोशल मीडिया पर पढ़े एक प्रसंग ने मन को काफी गुदगुदाया। आप भी जानें कि आखिर उसमें ऐसा क्या था कि उक्त प्रसंग, लेखन का विषय बन गया। प्रसंग के अनुसार बंद दुकान के थड़े पर दो बुजुर्ग आपस मे बातें करते हुए हंस-हंस कर लोट-पोट हो रहे थे। राह चलते एक व्यक्ति ने उनसे इतना खुश होने की वजह पूछी तो एक बुजुर्ग र्का जवाब कम रोचक न था।
अपनी हंसी पर काबू पाते हुए उसने कहा-‘हमारे पास इस देश की समस्याओं को हल करने की एक शानदार योजना है। राहगीर भी हैरान हुआ कि देश विभिन्न समस्याओं से झूझ रहा है और बुजुर्ग समाधान लिए बैठे हैं। उसने भी माहौल में रोमांचकता लाते हुए कहा- बाबा! बताओ,ऐसी क्या योजना है। जिससे देश की सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। बुजुर्ग बोला- योजना यह है कि देश के सब लोगों को बड़ी-बड़ी जेलों में डाल दिया जाए। राहगीर बीच में ही बोल पड़ा-जेल कोई समाधान थोड़े ही है। कितने दिन जेल में रखोगे। समस्याएं बाहर की जगह जेल में शुरू हो जाएंगी। ये तो कोई समाधान न हुआ।
इस बार दोनों बुजुर्ग जोर से हंसे। युवक फिर हैरान। गम्भीर विषय में हास्य सहज नहीं लगा। फिर भी वो पूरे जवाब के इंतजार में बना रहा। इस बार दूसरा बुजुर्ग बोला- जनाब, बात तो पहले पूरी सुन लो। अधकचरा सुना और पढ़ा दोनों ही खराब होता है, ये तो जानते ही हो। अभी बात पूरी ही कहां हुई है हमारी, फिर कहना। राहगीर ने कहा-ठीक है बाबा, आप बोलो। बुजुर्ग बोला- लोगों के साथ प्रत्येक जेल में एक गधा भी जरूर डाला जाए| सारी समस्याएं अपने-आप हल हो जाएंगी। राहगीर ने हैरानी से दोनों को देखा और पूछा- समस्या लोगों की है। फिर लोगों के साथ गधों को क्यों कैद किया जाए? उनका क्या कसूर है? राहगीर के इस प्रश्न पर दोनों बुजुर्गों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और जोर का ठहाका लगाया। एक बुजुर्ग दूसरे बुजुर्ग के हाथ पर हाथ मारकर बोला- देख, अब तो आ गया होगा ना यकीन, तुझे मेरी बात पर। मैं नहीं कहता था, लोगों के बारे में कोई भी नहीं पूछेगा. सब गधे की फ़िक्र करेंगे। यहां लोगों से ज्यादा गधों की चिंता करने वाले है। कोई और प्रेरक वचन सुनने को मिलते, इससे पहले महोदय वहां से निकल गए।
चलिए, अब अपनी बात पर आया जाए। लोग तो हम सब है, ये गधा कौन है। सबके मन अपने-अपने तरीके से किसी किरदार को ‘गधा’ ठहराने की जंग शुरू कर देंगे। पर मुद्दा ये थोड़ी ही है। आज के माहौल में हर वो आदमी ‘गधा’ है,जिसे अपनी फिक्र नहीं है। देश की, नेता की, अभिनेता की चिंताएं तो हमें अंतिम सांस तक करनी ही है। लगातार हो रहीं अपनों की मौत से वैसे भी कलेजा छलनी-छलनी होने को है। ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस तक तो ठीक, ये फंगस इंद्रधुनुष का रूप न धारण कर ले, यही चिंता रातों की नींद उड़ाए हुए है। पुरानी कहावत है- गधे को कितने ही बढ़िया खुशबू वाले साबुन से नहला दो, वहां से निकलते ही उसे कुरड़ी(कूड़े का ढेर) पर ही लौटना है। ऐसे में उसे नहलाने या न नहलाने की चिंता ही निरथर्क है। ऐसे में आप भी फिलहाल ‘गधों’ की चिंता छोड़ें। ये न किसी के हुए हैं और न होंगे। इनका ‘दिखना’ और ‘दिखाना’ दोनों जमीन-आसमान का फर्क लिए होते हैं। कब किस टोली में मिल जाएं, कब किसे छोड़ जाएं। इसका परमेश्वर को भी पता नहीं है। बच्चन साहब ने अपनी वाल पर आज शानदार पंक्तियां लिखी हैं-
‘ ये व्यक्तित्व की गरिमा है कि, फूल कुछ नहीं कहते..
वरना, कभी कांटों को मसलकर दिखाइए…।
(नोट: लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे किसी के साथ व्यक्तिगत रूप से न जोड़ें)
– सुशील कुमार ‘नवीन’,हिसार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।