गति
समझौते
बन गए हैं
जिन्दगी के पर्याय मेरे
अंधकार टूटन बिखराव
चिर सहयोगी हैं
अंत हीन बेतरतीब सफर के
मेरी आस्था श्रद्धा
मेरा दृढ़ विश्वास
बंद है मेरी मुट्ठियों में
मरु सागर का भ्रम देते हैं
मै अनंत की तलाश मे हूं
मेरे साथी
मेरी थकान को गति दो
लेखक संतोष श्रीवास्तव