गतिमान रहो
दो पल का ये नश्वर जीवन
हर पल इसको भरपूर जियो
तुम किस उलझन में ठहरे हो
गतिमान रहो, गतिमान रहो
रवि में गति है, शशि में गति है
पृथ्वी में गति, उड्गन में है
ध्वनि के संचालन में गति है
इन सूर्य रश्मियां में गति है
इस दिव्य जगत के कण कण में
गति ही सदैव परिलक्षित हो
तुम किस उलझन में ठहरे हो
गतिमान रहो, गतिमान रहो
गति जीवन में गति श्वासों में
गति हिरदय के स्पंदन में
गति रक्त शिराओं में भी है,
गति नाद स्वरों के गुंजन में
गतिहीन नहीं कुछ जीवन में,
गति है तो हैं ये प्राण अहो
तुम किस उलझन में ठहरे हो
गतिमान रहो गतिमान रहो.
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद