गणेशा
माटी कोड़ी,माटी को छानी
कूट पीस के फिर उस में
मिलाया थोड़ा सा पानी
पैरों से मर्दन दिए
फिर माटी बनी मूर्ति बनने के लाने सयानी
हाथों से आकर दिए
फिर प्रभु तुम साकार हुए
आकाश के नीचे
सूर्य तेज में तुम्हें तपाया
थोड़ा ताजी हवा खिलाया
कई रंगों को जोड़ तोड़ के
हमने तुम्हें लंबोदर बनाया
कोई ढेला दे कर तुमको
हमसे मोल ले जाएगा
प्राण प्रतिष्ठा कर के
फिर तुमको विघ्नहर्ता बनाएगा
घी का दिया, चन्दन की अगरबती
लड्डू , मोदक भोग तुम्हें लगाएगा
प्रथमा तुम्हें बुलाएगा
सुनो … गणेशा बिपप्ती है भारी
काली घटा है बरसने वाली
जो मुझ से इतना ही हो पाया है
प्लास्टिक के घर में तुम्हें छुपाया है
खुद का रखना थोड़ा ख्याल
रंग न उतरे मूर्ति का
इतना ही करना कमाल
बच्चे अब भी भूखे है
मेरे घर के सारे कनस्तर टूटे हैं
तुम बिकोगे सिक्कों में
तभी चूल्हे पर बर्तन खनकेंगे
हम सब के सूखे मुहो पे
हसीं के बादल चमकेंगे …
~ सिद्धार्थ