Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Aug 2024 · 2 min read

#गणतंत्र_का_अमृत_वर्ष

#गणतंत्र_का_अमृत_वर्ष
■ कविता / मेरे सपनों का भारत (स्वाधीनता की शताब्दी 2047 तक)
【प्रणय प्रभात】
मैं देख रहा सुंदर सपना।
कल कैसा हो भारत अपना।।
सपना है जागी आँखों का।
सपना प्रतिभा के पाँखों का।।
सपना विकास के कामों का।
हाथों को मिलते दामों का।।
सपना शीतल हरियाली का।
सपना हर-घर खुशहाली का।।
बस कर्म प्राण हो कर्ता का।
ख़ुद पर ख़ुद की निर्भरता का।।
ना कोई फैला हाथ दिखे।
मानव मानव के साथ दिखे।।
तितली के पंख न घायल हों।
मोरों के पग में पायल हों।।
पैरों से लम्बी चादर हो।
समरसता के प्रति आदर हो।।
ना किसी हृदय से उठे हाय।
हर पीड़ित पाए प्रबल न्याय।।
चाहे घर आलीशान न हो।
झुग्गी का नाम निशान न हो।।
संरक्षित हो शिशु का जीवन।
ऐसे घर हों जैसे उप-वन।।
कुदरत का कोप न हो हावी।
सतयुग-त्रेता सा हो भावी।।
बारिश केवल वरदानी हो।
धरती की चूनर धानी हो।।
सबको सुंदर परिवेश मिले।
दुनिया से ऊपर देश मिले।।
ना ही उन्मादी नारे हों।
ना कम्पित छत, दीवारें हों।।
हो स्वच्छ, सुपाचक लासानी।
निर्मल हो नदियों का पानी।।
पंछी चहकेँ, परवाज़ करें।
विष-मुक्त हवाएं नाज़ करें।।
ना सीलन हो, ना काई हो।
बस्ती-बस्ती अमराई हो।।
हो लुप्त पीर, परिताप मिटे।
दैहिक-दैविक संताप मिटे।।
हर एक जीव में नाथ दिखें।
फिर सिंह-वृषभ इक साथ दिखें।।
ना धर्मो का उपहास बने।
हिंसा बीता इतिहास बने।।
ना रुदन, वेदना, क्रंदन हो।
केवल सुपात्र का वंदन हो।।
ना सत्ता पागल मद में हो।
नौकरशाही भी हद में हो।।
ना लाशों पर रोटियाँ सिकें।
ना दो रोटी को देह बिकें।।
बिन रिश्वत बिगड़ा काम बने।
हर गाँव-शहर श्री-धाम बने।।
बीमारी, ना बीमार मिले।
सस्ता, सुंदर उपचार मिले।।
ना लुट पाएं, ना ही लूटें।
ना दर्पण से सपने टूटें।।
सिद्धांत न कोई शापित हो।
नैतिकता फिर स्थापित हो।।
मासूमों की मुस्कान खिले।
तरुणाई को चाणक्य मिले।।
गुरुकुल जैसी शालाएं हों।
उन्मुक्त बाल-बालाएं हों।।
सबको समान अधिकार मिले।
समरसता का उपहार मिले।।
मानस इस हद तक बनें शुद्ध।
सब शांत दिखें ना दिखें क्रुद्ध।।
ना कोई वंचित, शोषित हो।
जो पाए जन्म सुपोषित हो।।
जुगनू तक ना बेचारा हो।
अंधियारों में उजियारा हो।।
हर इक विकार पे विजय मिले।
मानवता निर्भय अभय मिले।।
ना बहने बिलखें ना माँएं।
ना बारूदी हों सीमाएं।।
ना आगज़नी, ना रक्तपात।
ना मर्यादा को सन्निपात।।
मंगल तक जाए, ना जाए।
जीवन मे मंगल आ जाए।।
नैतिकता-युक्त सियासत हो।
आज़ादी अमर विरासत हो।।
जन निष्ठावान कृतज्ञ बने।
सांसें हवि, जीवन यज्ञ बने।।
मंथन से अर्जित अमृत हो।
फिर से अखंड आर्यावृत हो।।
निज राष्ट्र भुवनपति सौर बने।
फिर जगती का सिरमौर बने।।
आज़ादी के अमृत काल के बाद गणतंत्र के अमृत वर्ष में आज़ाद भारत के 100वें साल के लिए है मेरा यह सपना। जिसे एक मानवतावादी व सम्वेदी भारतीय के रूप में देखना मेरा कर्त्तव्य भी है और अधिकार भी। महान भारत-वर्ष के अमर संघर्ष की सफलता के प्रतीक 78वें स्वाधीनता दिवस की अनंत बधाइयां।।
जय हिंद, जय भारत
वंदे मातरम
●सम्पादक●
न्यूज़&व्यूज़
श्योपुर (मप्र)

1 Like · 46 Views

You may also like these posts

ज़िंदगी में छोटी-छोटी खुशियाॅं
ज़िंदगी में छोटी-छोटी खुशियाॅं
Ajit Kumar "Karn"
इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे।
इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे।
Manisha Manjari
मरा नहीं हूं इसीलिए अभी भी जिंदा हूं ,
मरा नहीं हूं इसीलिए अभी भी जिंदा हूं ,
Manju sagar
Reliable Movers and Packers in Hyderabad
Reliable Movers and Packers in Hyderabad
Shiftme
Don't get hung up
Don't get hung up
पूर्वार्थ
E certificate kab tak milega
E certificate kab tak milega
भरत कुमार सोलंकी
- टूटते बिखरते रिश्ते -
- टूटते बिखरते रिश्ते -
bharat gehlot
"सुनो"
Dr. Kishan tandon kranti
Zindagi
Zindagi
Naushaba Suriya
तू सरिता मै सागर हूँ
तू सरिता मै सागर हूँ
Satya Prakash Sharma
ये उम्र के निशाँ नहीं दर्द की लकीरें हैं
ये उम्र के निशाँ नहीं दर्द की लकीरें हैं
Atul "Krishn"
राजनीति में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या मूर्खता है
राजनीति में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या मूर्खता है
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
मेरी कलम
मेरी कलम
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
दोहावली
दोहावली
आर.एस. 'प्रीतम'
*गुरूर जो तोड़े बानगी अजब गजब शय है*
*गुरूर जो तोड़े बानगी अजब गजब शय है*
sudhir kumar
ओ रावण की बहना
ओ रावण की बहना
Baldev Chauhan
हर हाल में रहना सीखो मन
हर हाल में रहना सीखो मन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
आपसे गुफ्तगू ज़रूरी है
आपसे गुफ्तगू ज़रूरी है
Surinder blackpen
..
..
*प्रणय*
ଏହି ମିଛ
ଏହି ମିଛ
Otteri Selvakumar
भारत के जोगी मोदी ने --
भारत के जोगी मोदी ने --
Seema Garg
हां..मैं केवल मिट्टी हूं ..
हां..मैं केवल मिट्टी हूं ..
पं अंजू पांडेय अश्रु
रुख़्सत
रुख़्सत
Shyam Sundar Subramanian
भूल जा वह जो कल किया
भूल जा वह जो कल किया
gurudeenverma198
2971.*पूर्णिका*
2971.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तारे बुझ गये फिर भी
तारे बुझ गये फिर भी
अर्चना मुकेश मेहता
*आठ माह की अद्वी प्यारी (बाल कविता)*
*आठ माह की अद्वी प्यारी (बाल कविता)*
Ravi Prakash
राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं, राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं...
राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं, राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं...
Anand Kumar
बेवजह की नजदीकियों से पहले बहुत दूर हो जाना चाहिए,
बेवजह की नजदीकियों से पहले बहुत दूर हो जाना चाहिए,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आनंद
आनंद
Rambali Mishra
Loading...