गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
सत्य अहिंशा और धर्म का मै हिंदुस्तान बोल रहा हूँ
पंडित पी के तिवारी (लेखक एवं पत्रकार)
जहाँ सत्य अहिंसा और धर्म का पग पग लगता फेरा बो भारत देश है मेरा,ये पंक्तियां ऐसे ही नही कही गई या लिखी गयी थी
इतिहास गवाह है नफरत को कभी नफरत से ख़त्म नहीं किया जा सका है ।बिना बलिदान के कोई इन्कलाब नहीं आया है। रेगिस्तान की रेत पर जब भी किसी ने हरियाली का सपना देखा है तो बारिश की पहली बूंदों ने बलिदान दिया। यह दूसरों का दिया हुआ बलिदान है जो आज हम आज़ाद और लोकतंत्र देश में अपनी पूरी आज़ादी के साथ साँस ले रहे हैं। यह सदियों की परंपरा रही है कि अपने पूर्वजो की बोई हुई फसल हम काटते हैं और आने वाली नस्ल के लिए फसल बोते हैं।आज फिर से इस देश को पूर्वजो की भांति बलिदान की आवश्यकता है। आज भूक प्यास और लहु नहीं चाहिए। आज इस देश को त्याग की ज़रूरत है। छल, कपट, हिंसा, नफरत, आपसी भेदभाव, इर्ष्या से त्याग का बलिदान आज देश हम से मांग रहा है। हमारे पूर्वजों का बलिदान, बहता हुआ लहू, देश के हित में कुछ कह रहा है। वो कह रहा है की देश में फैली इस असहिष्णुता का सपना तो हम ने नहीं देखा था और न ही इस के लिए हम ने अपन लहूँ दान किया था । फांसी के फंदे पर हम यह सोंच कर नहीं चढ़े थे कि आने वाला कल देश की एकता अखंडता की बजाये धर्म और वर्ग की गन्दी राजनीती पर उतर आयेगा। इस देश ने हम से कुछ कहा था अब तुम से कुछ कह रहा है।
मैं हिंदुसतान हूँ। हिमालिया मेरी सरहदों का पहरेदार है। गंगा मेरी पवित्रा की सौगंध । इतिहास के शुरु से में अंधेरों और उजालों का साथी रहा हूँ । सूफी संतों की तालीम और तरबियत मेरा बुलंदी और इस रिवायत के चाँद को लगता हुआ गहन मेरा ज़वाल है। इतिहास के शुरू से लेकर अब तक अँधेरे और उजालों को मैं ने देखा है । मुझे याद है जब ज़ालिमों ने मुझे लूटा तो मेहरबानी ने सहारा दे कर संवारा । ऐसा भी दौर आया जब नादानों ने मुझे ज़ंजीरें पहना दीं । मैं ग़ुलाम बना लिया गया । लेकिन फिर मेरे चाहने वालों ने उन ज़ंजीरों को उतार कर फ़ेंक दिया । पूरी दुनिया में मैं एक अकेला ऐसा हूँ जिस ने अलग अलग संस्कृति, भाषा , स्वभाव के साथ अलग अलग धर्मों को अपने सीने में न सिर्फ जगह दी बल्कि उसे बढ़ावा भी दिया । आज भी दुनिया मुझे व्यक्तिगत भेदभाव से जानती और मानती है । मैंने इस दर्द को भी बर्दाश्त किया है जब मेरे टुकड़े कर दिए गए । मैंने इस गर्व को भी महसूस किया है जब मेरे जवानों ने मेरी खातिर अपने खून से मेरा दामन भर दिया ।यह मेरी खुश क़िस्मती रही कि मेरे आँगन मैं जहां एक तरफ मस्जिद से अज़ान कि आवाज़ें तेज़ होती हैं तो दूसरी तरफ मेरे ही सेहन में पूजा अर्चना और मंदिर के शवालों से आवाज़ें आती हैं । मैं बहुत खुश था कि प्राचीनB इतिहास की जंगों के बाद मुझे अब कुछ सुकून मिला था । मेरे बच्चे विकास कर रहे थे और दुनिया में मेरा नाम हो रहा था । अचानक इस चाँद को गहन लग गया । नफरत के बादल मण्डलाने लगे । और फिर धीरे धीरे खून कि बूँदें पड़ना शुरू हो गयीं । मुझे घबराहट होने लगी लेकिन लोगों ने उसे संभाला और एक दूसरे के धर्म को बुरा भला कहने के बजाए अपने अपने धर्म पर क़ायम रह उसी पर रहने की हिदायद दी जो काफी हद तक कारगर हुई । सूफी संतों ने इस में नुमायां काम अंजाम दिया है ।
सच कहूँ तो मेरी संस्कृति का चरम मेरी लोकप्रियता और विशिष्टता इन्हीं सूफी संतों की कोशिशों और क़ुर्बानियों का नतीजा है वरना धर्म के ठेकेदारों ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था । एक धर्म दूसरे मज़हब का जानी दुश्मन होना चाहता था जिस की छींटें गाहे-ब-गाहे नज़र आ जाती हैं । आज हर धर्म में इस को इस्तेमाल करने वाले पैदा हो गए हैं जिन्होंने अपने ज़ाती लाभ की चमक में मुझे अनदेखा कर दिया । मेरी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ाईं और उस पर किसी को अफ़सोस तक न हुआ । किसी ने भी इस हिंसा में मेरा , मेरी इज़्ज़त , मेरे वक़ार , मेरी संस्कृतिक , मेरे चरित्र और रुतबा का ख्याल नहीं किया । सभी ने मुझे सरे आम रुस्वा किया । लोगों को मुझ पर हंसने का मौक़ा दिया । सब ने मेरी मोहब्बत और वफादारी की क़समें खाईं तो लेकिन जब मेरा सौदा किया तो तोते जैसी आँखें फेर लीं । मैंने अपने सेहन में बहुत सी जंगें देखी हैं लेकिन धर्म के नाम पर ऐसी घिनोनी खींचतान नहीं देखी । मेरी आँचल और साए में परवरिश पाने वाले लोग तो शांतिपूर्ण और एक दूसरे का ख्याल रखने वाले थे । कुछ को बहुमत के मात्र वहम ने घमण्डी और अहंकारी कर दिया तो कुछ पर सऊदी और कतरी डॉलर का नशा तारी हो गया । और दोनों ने मिल कर मेरा तमाशा बना दिया । मेरी बरसों बरस की रिवायत को रुस्वा और ज़लील कर दिया । मेरे ही घर में तो हिंसा का ऐसा शोर मचा रखा है की अब मेरा ही दम घट रहा है। समझ में नहीं आता किसे दुलार करूँ और किसे सहारा दूँ । मेरे अपने बच्चों के खून में भरा मेरा दामन आज भी मुझे बेचैन करता है । नादान शासकों की सुस्ती काहिली की सज़ा मैंने पाई है । हुकूमत की लालच, दौलत और ताक़त की हवस में खुद मेरा सौदा करने वालों को भी मैंने अपनी मायूस आँखों से देखा है । आज की यह असहिष्णुता, हिंसा और नफरत की बीमारी तो मुझे अंदर से खोखला कर रही है । यह तो किसी दीमक की तरह मेरे वुजूद को खाए जा रहा है । अमन और सुकून भंग हो रहा है । एतबार और विश्वास खत्म हो रहा है । इंसानी सहिष्णुता सरे आम रुस्वा हो रही है ।
जिस व्यवहार और आपसी एकता की क़समें दुनिया खाती थी आज इस की हैसियत मनोरंजन से ज़्यादा की नहीं । जिस की बुनियाद पर अंदर ही अंदर मेरा वुजूद हिल चूका है । और मुझे मेरे भविष्य में अँधेरा नज़र आ रहा है । यह लोग नफरत की दीवारें अपने घरों में ही नही बल्कि मेरे सीने में स्थापित कर रहे हैं । अफ़सोस कि यह सब के सब मेरे नाम लेवा हैं मेरे वफादार और मुझ पर मर मिटने कि क़सम खाने वाले हैं । मैंने ज़मीन दी तो किसी खास ज़ात बिरादरी या धर्म को आरक्षण नहीं दिया कि तुम इस दर्जा में रहोगे और तुम्हारा मुक़ाम यह होगा । अपने सीने पर हर क़दम को सहारा दिया बिना किसी धर्म और समाज के भेदभाव के । यह अलगाव, भेदभाव, आतंकवाद, उग्रवाद, नफरत और हिंसा का पाठ कहाँ से सीखा । मेरे चमन में ऐसी भी शख्सियतें आबाद हुईं जिन्होंने मेरे नाम और मुक़ाम बुलंद किया । में सूफी संतों की ज़मीन हूँ जिन्होंने हमेशा समाज की सेवा को सर्वोच्च सेवा मान कर उस का प्रचार किया और उसे बढ़ावा दिया । एकता का ऐसा पाठ दिया कि दुनिया आज भी उसे भुलाने में कामयाब नहीं सकी। उन्होंने आपसी मेल जोल, सौहार्द और भाई चारगी के ऐसे ताने बुने कि उसकी बुनियादों को हिलाने वाले फना हो गए मगर वह आज भी क़ायम है । अब तक तो तुमने इस संस्कृति और रिवायत को सर आँखों से लगा रखा था अब अचानक क्या हो गया ? एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों हो गए ? में अपने अतीत के खुनी इतिहास को वापस आता नहीं देख सकता ।
नफरत से कभी किसी का भला नहीं हुआ है । मैंने एक से एक सूरमा देखे हैं और फिर उनका अंजाम भी देखा है । मैंने फ़क़ीरों की बादशाहत भी इन्हीं आँखों से देखी है । मेरे नाम लेवा मुझे रुस्वा नहीं कर सकते । मुझे और मेरी रिवायत को भुला देने वाले मेरे चाहने वाले नहीं हो सकते । भ्रम और अहंकार की क़ैद से आज़ादी हासिल करो । किसी दूसरे मुल्क की चमक से अपनी ज़िम्मेदारियों को खोने ना दो । और ना ही किसी सिर्फ भ्रम में अहंकार का शिकार हो जाओ । अभी में ज़िंदा हूँ । मेरी तरक़्क़ी में तुम्हारी तरक़्क़ी है । और मेरी भलाई ही में तुम्हारा भविष्य है । आओ संकल्प लें कि हम सब मिल कर एक बार फिर उस रिवायत को ज़िंदा करेंगे जिस में इंसानियत ही गुणवत्ता और बैलेंस हो । और इंसानी सहिष्णुता हमारी प्रक्रिया । इतिहास में वही ज़िंदा रहते हैं जो अपनी प्रभावशीलता दूसरों में छोड़ जाते हैं । और दुनिया उसी को याद रखती है जिन के अंदर त्याग और क़ुरबानी का जज़्बा हो । वरना खुदाई का दावा करने वाले ना जाने कितने सूरमा मिटटी का भोजन हो गए । आज कोई भी उन का नाम लेवा नहीं । लेकिन ऐसे कई आस्ताने मिलेंगे जहाँ आज भी हर धर्म और हर वर्ग के सर बड़ी ही शालीनता और अकिदात के साथ झुकते हुए नज़र आते हैं । ना भूलो कि आज का ज़ुल्म कल तुम्हें सोने नहीं देगा लेकिन आज की क़ुरबानी तुम्हें बे नाम व् निशान नहीं छोड़ेगी । आज गौर कर कि कल समय न मिले ।