||गणतंत्र और गँवारतंत्र ||
“गणतंत्र बन गया गँवारतंत्र अब
कुछ लोगो के कुंठित विचारों से
सच्चाई कर रही मुजरा कोठे पे
अंधे कानून के उन राहों पे ,
हो गया बहुत ही बड़ा अर्थ अब
रिश्ते भी बिक जाते है इनमे
ना ऊँच नीच की परिभाषा कोई
हर गुनाह छिप जाते है इनमे ,
करता चीरहरण जो भारत का
महान पुरुष कहलाता है वो
चूमता कानून कदमो को उसके
और न्यासंगत कहलाता है वो ,
मुर्ख थे कुछ लोग यहाँ पे
हुए शहीद जो सरहदों पे जाके
बन गए चहेता इन देशवासियों के
चंद देशद्रोही वो नारे लगाके ,
पूछता है अब हर कोई उनको
लुटाते पैसे हर नारे पे उनके
शाबासी मिलती हर नारे को उनके
चूमते है लोग झुक के कदमों को उनके ,
ना मिलती शिक्षा उन बच्चों को
रहते अधनन्ग फटे कपड़ो में
विधवा हुयी शहीदों की बीबियाँ
हो जाती है वंचित दो निवालों से ,
खूबसूरत है कानून इस देश का
ना मिलती शहीदी को सहादत उसकी
देता सुख सुविधाये देशद्रोहियों को
जुट जाते पूरी खिदमत में उनकी ||”