गड़बड़ चेला अड़बड कथन
(गुरु कुल में )
गड़बड़ चेला अड़बड़ कथन
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10/6=16
अंत में तगण 221
10/6=16
अंत में जगण 121
तुम करो गुरू जी, भले चोट ।
किसको प्यारे न ,लगें नोट।।
लेना सबको ही,पड़े ओट
परदे में छिपते ,सभी खोट
जमना कैसे भी,चाह चाह।
प्रस्तुतीकरण में, वाह वाह।
निकले चाहत में ,राह राह।
दिल का करते हैं, दाह दाह
खाने वालों की, भरें जेब ।
धन में दब जाते,सभी ऐब।
है पैसा सबका,बना मर्म
फिर देश भक्ति का, कर्म धर्म
हमने यह पाया, छान छान ।
पानी भरता है,छंद ज्ञान।
है कला गले की, खीचतान।
रस अलंकार हैं,रूप पान ।
घनघोर तालियों, के पहाड़।
वनराज सरीखे,दें दहाड़ ।
जुमलों के ऊँचे, हों कबाड़
फिर कौन सके कुछ,भी
बिगाड़।
समझो हमको स्वीकार करो।
गुरु देव शुरू व्यापार करो।
तुम उचटे कूदे, खिले नहीं।
अंगूर नोट के मिले नहीं।।
अब खट्टे हैं यह,हमें कहो।
कुंठित होकर घर, पड़े रहो।
वे समय पुराने, निकल गये।
श्रोता आयोजक,बदल गये।
सब हुआ शार्टकट, रास रंग।
हो गये लतीफे,हास्य व्यंग।।
सब ज्ञान बांटते फिरी फिरी
अबतक पाई नहिं ,पद्म शिरी।
पहचान आपकी, छिपी नहीं
पर जोर लगाया, नहीं कहीं
गुरु कुल का होता, बड़ा भला
देते नेता जी, दिया जला।
बस इतने में ही, तामझाम
मिल जाता बढ़िया, नाम दाम
कर राजनीति का घालमेल।
कब का हो जाता धन्य खेल
इस पर भी जरा विचार करो।।
गुरु देव शुरू व्यापार करो।
ले हाथ छडी चल रहे चाल।
हो पार बहत्तर,पके बाल ।
मत चाहो लाना ,नया मोड़।
हम हाथ तुम्हारे,रहे जोड़।
जो भी चलता है, चलने दो
चेलों की चाँदी ,गलने दो ।
यह मंच निशा न,ढलने दो ।
दिनकर न कोई निकलने दो ।
जिसकी हो उसे सुनाने दो
जैसे जम रहा जमाने दो ।
चोरी की है मत,ताने दो
रोटी पेटों में ,जाने दो ।
यह भूखों पर उपकार करो।
गुरु देव शुरू व्यापार करो।
हम संचालन में सिद्ध हस्त
करते जनता को मस्त मस्त
हर बंधन कविता तोड़ तोड़।
हर गली मुहल्ला,जोड़ जोड़
चल रही बराबर, कूद कूद ।
रस बरस रहा है, बूँद बूँद ।।
नूतन मेघों से प्यार करो ।
गुरु देव शुरू व्यापार करो।।
कट गई आपकी, वैसे में
हमको है काटना, ऐसें में।
धंधा हर तरह मुनाफे का।
मत करो विरोध लिफाफे का।
जैसा भी है मनरंजन है।
छीना छपटी लत भंजन है।
द्विअर्थी फूहड़पन भी है।
मिल रहा उसी से धन भी है ।
मत कविता का शृंगार करो
गुरुदेव शुरू व्यापार करो ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
17/10/22