गज़ल
गज़ल
2122/2122/2122/212
जो नहीं मुमकिन था, वो इंसान सब करता गया।
पैर धरती पर रहे औ’र चांद पर देखा गया।1
जो नहीं विचलित हुआ है ज़ख्म खाकर भी कभी,
अच्छे कर्मों का सिला उसको सदा मिलता गया।2
कौड़ी कौड़ी जोड़ कर रखता गया खाया नहीं,
ले नहीं कुछ जा सका वो हाथ ही मलता गया।3
चार धामों में गया जो चाहा था पाया नहीं,
जिंदगी भर खुश रहा मां की दुआ लेता गया।4
दर्द पाए उनसे भी जिनको दिया सबकुछ मगर,
दोस्तों के साथ रहकर हॅंसता मुस्काता गया।5
धूप, छाले पांव में कोई तरस खाया नहीं,
रास्ते भर दर्द के मारे वो चिल्लाता गया।6
प्यार से है वास्ता जिसका भी ‘प्रेमी’ उम्र भर,
पुष्प खुशियों के वो जीवन पथ पे विखराता गया।7
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी