गज़ल
हमने चाहा था के रोशन रहे दिल की दुनिया
तुमने दीपक को बुझाने की मुनादी कर दी।
गुँचे खिल भी न पाए गुलशन में
कुचली कलियाँ, बरबादी कर दी।
मुहाफ़िज़ आप कभी बन ना सके
वादे तोड़े औ जिंदगी तनहा कर दी।
आज आकाश भी तड़पने लगा
रोया इतना , के ज़मीन तर कर दी।
ये अमल कैसा के, समझे ही नहीं ‘रानू’ को
जिंदगी दे ना सके, मौत भी मुश्किल कर दी।