गज़ल
उल्फ़त की कोशिशें मेरी नाकाम हो गई ।
पर मुफ़्त में ये ज़िन्दगी बदनाम हो गई।।
जो बात राज़ राज़ थी हम तुम के दरमियाँ
अफ़सोस की है बात वही आम हो गई।।
वादा हुजूर कर गये आए न देर तक,
रस्ते को देख-देख मेरी शाम हो गई।।
अब तो उसूल कोई नहीं शख़्स का बचा,
ग़ैरत न जाने कब कहाँ नीलाम हो गई।।
अहसान दोस्तों ने भी मुझपे किया है खूब,
के दुश्मनी मेरे लिए आराम हो गई।
छाता नशा है रोज इन्हें देख देखकर
आँखें ये तेरी मयकदे का जाम हो गई।।
urvashiiiiiii ✍️✍️