गज़ल
गज़ल
1222….1222…..1222…..1222
अगर कुछ मिल नहीं पाया तो उसकी क्यों शिकायत है!
मिला जो भी हमें यारो ये उसकी ही इनायत है!
खुदा का शुक्र करिए रोज ये अच्छी सी आदत है!
कहें गर दूसरे शब्दों में तो ये भी इबादत है!
जो सेवक और चौकीदार दिखते हैं चुनावों में,
असल में सब लुटेरे हैं कि खतरे में रियासत है!
हमारे आंसुओं में भी उन्हें है फायदा दिखता,
कहाँ तक गिर गये हैं लोग कैसी ये सियासत है!
कहाँ है देश और जनता किसे इसकी फिकर यारो,
कि हासिल हो उन्हें सत्ता ये कुर्सी की कवायत है!
वो मालिक है जो देता है ये सबकुछ छीन लेते हैं,
ये सबकुछ बेंच डालेंगे यही बस इनकी नीयत है!
खुदा ही अब बचाए देश औ’र दुनियाँ को बस ‘प्रेमी’,
कहाँ हो बोस नेता जी तुम्हारी फिर जरूरत है!
….. ✍ ‘प्रेमी’