गज़ल
नहीं कोई गिला उससे, जो गिरता है फिसलता है!
वही होता सफल यारो, जो गिर कर भी संभलता है!
कभी भी हार कर थक कर, न बैठो छोड़ कर मंजिल,
कि सूरज रोज ढलता है, सुबह को फिर निकलता है!
बिना कोई परिश्रम के किसी को कुछ हुआ हासिल,
कड़ी मेहनत जो करता है उसी का यत्न फलता है!
अमीरों को मुसीबत में, हजारों हैं मदद वाले,
मगर मुफ़लिश का् गर्दिश में अकेले दम निकलता है!
कि पाना प्यार चाहत में, यही प्रेमी कि है मंजिल,
उसे तो हारना या जीतना दोनों सफलता है!
…..✍ सत्य कुमार “प्रेमी”