गज़ल
आ गया है चांद छत पर प्यार कर!
खोल खिड़की चांद का दीदार कर!
छा रही है ….श्रृतु बसंती हर तरफ,
देर मत कर प्यार का इज़हार कर!
हर तरह की खुशबु ले बन जा भ्रमर,
हर कली हर फूल से तू प्यार कर!
देश पर कुरबान भी ……होना पड़े,
खुद को् कुर्बानी के् हित तैयार कर!
जितना् दोगे ..दो गुना मिल जायेगा,
यार सुन ले प्यार का ..व्यापार कर!
जो मिला …उस में ही् तू संतोष रख,
खुश रहो प्रभु का सदा आभार कर,
प्रेम ही खुशियों का् बस …आधार है,
बन के् इक प्रेमी मधुप गुंजार कर!
……..✍ सत्य कुमार ‘प्रेमी’