गज़ल
करीब हो मगर, करीब दिखते नहीं
ख्वाब खुशबू से, तेरी महकते नहीं
यादों के महल, छोड़ दिये तुमने बनाना
हिचकी की सुद से,जज्बात बहकते नहीं
ये कैसा प्यार था,जो पल में भुला दिया
क्या दिली अरमान, कभी तेरे सजते नहीं
आज भी महफूज़ हो, मेरे दिल में तुम
अश्कों के सागर,आँखों से निकलते नहीं
इतने बेदर्द भी न बनों, कि आफताब
दिली मेहताब, आसानी से मिलते नहीं
रेखा”कमलेश ”
होशंगाबाद मप्र