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3 Apr 2018 · 1 min read

गज़ल

——– गज़ल——–

कितने आँसू बह निकले हैं इक लम्हा मुसकाने में।
जीवन सारा बीता जाये ख़ुद को ही समझाने में।।

साना है खून पसीना जिसने इस घर के गारे में ।
उन अम्मी अब्बा का बिस्तर लगता क्यूँ वीराने में।।

गिरता हूँ फ़िर उठता हूँ चलता हूँ अपनी राहों पर।
दुनियादारी सीख न पाया लेकिन ठोकर खाने में।।

रुत बदले भँवरा कोई फूलों पे पागल हो जाये।
क्या रक्खा है यार यहाँ काँटों से प्यार जताने में।।

कोई ग़म में घायल है कोई खुश हो पागल होता ।
दिल के मारे सारे मिलते साग़र ले मयख़ाने में।

————विनोद शर्मा “सागर”

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