गज़ल
किया वक़्त ने ये मेरा फ़ैसला है।
क़दम दर क़दम ज़िन्दगी फ़ासला है।।
चलो हसरतों का उजाला जलाओ।
अँधेरों में रोने से क्या फ़ायदा है। ।
अभी होश में हूँ प्यास भी है बाक़ी।
ज़रा दूर ही तो सुना मयकदा है।।
उछालो न मुझको मैं पत्थर नहीं हूँ।
गया टूट जो मैं न आती सदा है।।
जिसे ढूँढ़ता हूँ मिले भी तो कैसे।
बना रौशनी वो नज़र में बसा है।।
कहानी वफ़ा की मुझे ना सुनाओ।
हकीक़त यही यार तू बेवफ़ा है।।
गिरे किस तरह घोंसले पेड़ पर से।
हवा के बिना कोई पत्ता हिला है। ।।
नई सूरतें रोज़ ले घूमता है ।
यहाँ आदमी ख़ुद ही इक आइना है।
———विनोद शर्मा “सागर “