गज़ल
१२२-१२२-१२२-१२
आने लगी
शमा दिलजलो को जलाने लगी
पतंगो को यूं आज़माने लगी
गले ज़िंदगी के जरा वो लगी
कज़ा मुस्कुरा साथ आने लगी
मिलाकर नज़र दूर तुम क्या गये
झुकी आंख दरिया बहाने लगी
खुमारी नहीं ये अदा इश्क की
हवाओ में ही घर बनाने लगी
कहानी मुहब्बत की गड़ने लगी
फ़िज़ाओं पे भी शोखी छाने लगी
भिगोती रही बारिशे जो जहां
मेरी आंखो में सैलाब लाने लगी