गज़ल (छोड़ आए वो शहर क्या करते)
२१२२ ११२२ २२(११२)
छोड़ आए वो शहर क्या करते
बिन तेरे यार बसर क्या करते
अजनबी हो गई गलियां तेरी
उन गलियों में गुजर क्या करते
जिंदगी रह गई तन्हा अब तो
यार तन्हा सफर ये क्या करते
कुछ न बाकी हैं नीशां उल्फत के
खुद के खोने का ज़िक्र क्या करते
अब तो आदत सी हो गई गौतम
दर्द के साए असर क्या क्या करते