गजल_पतंगों को किया देखा शमाँ से है
पतंगों को किया देखा शमाँ से है लिपट मरना।
इसीसे हमने सीखा है मुहब्बत को बयां करना।
कि मरना भूख से यारो किसीकी आरजू होगी।
उन्हें मरना अगर है तो बस खाते हुए मरना।
हवा भी छेड़ देती जख्म जो सोये हुए से हैं।
तभी सीखा कि दुनियाँ में अगर करना दवा करना।
मिले हैं अजनबी जब भी बड़े ही प्यार से मिले।
बस मिलना ही सिखा देती है उनको दुश्मनी करना।
गिराया है तपस्वी ने चले जितने कदम हम भी।
इसीसे तय किया हमने गिरों को है खड़ा करना।
जिक्र जब कयामत का हुआ उनका ही नाम आया।
समझते हैं वो शायद कि कयामत है वफा करना।
करें फरियाद टूटे दिल कि पर,किससे करें शाहिद।
तुम्हीं से सीखते हैं सब क़तल करना,जफा करना।
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अरुण कुमार प्रसाद