गजल
दिलोजान से किसी की मोहब्बत में हूं
ऐसा लगता है मैं इबादत में हूं
चलो आज दो दो हाथ हो ही जाएं
आंधियों से कह दो मैं अभी फुर्सत में हूं
मेरा पता ढूंढ़ते हैं गुमनाम अंधेरे
मैं कब से चिरागों की सोहबत में हूं
मेरे गुनाह मुझ से छिपे नहीं हैं
मैं आज दिल की अदालत में हूं
दिल लगाने से पहले सोचा होता
क्या मैं तुम्हारी किस्मत में हूं ?
अब तक जिंदा हूं, सांस लेता हूं
खुदा का शुक्र है जिस हालत में हूं
वो भी पहले सा आदमी ना रहा
मैं भी अब संसद में हूं