गजल
एक तू ही जब हमसे वाबस्ता नहीं है
हमारे पास भी कोई और रस्ता नहीं है
भरे बाज़ार नीलाम होती है इंसानियत
कैसे कह दूं मैं कि हाल खस्ता नहीं है
मैं परेशां हूं दिल भी परेशां है
मां कहती है बेटा हंसता नहीं है
जिया कैसे जाए इतनी महंगाई है
मरना भी आजकल सस्ता नहीं है
जब तुम्हारा समय आएगा तुम्हे भी देखेंगे
वक्त कसौटी पर किसको कसता नहीं है
मानव क्यों छान रहा मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
क्या आदमी में भगवान बसता नहीं है
वक्त ने सबक तमाम सिखा दिए हमको
ज़िन्दगी के स्कूल में बस्ता नहीं है