गजल
दिल की ही सुनी होगी दिल से ही कही होगी|
वो आँख न वैचारी बे वजह बही होगी|
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दौलत में हुनर कब था इन्सान बनाने का,
दीवार अदावत की उल्फत से ढही होगी|
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रूकती न हिचकियों का इल्जाम किसे मैं दूँ,
तोड़ा था ये दिल मेरा दावे से वही होगी|
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हँसकर जो सजाते हो दौलत को तिजौरी में,
जाने वो कितनों के घर में न रही होगी|
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दुनियां में नहीं यूँ ही मकबूल वो आलिम है,
औरत जरूर कोई खामोश रही होगी|
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तारीक ने वैसे तो कई नाम सुनाये हैं,
मालूम इबारत क्या लिक्खी वो सही होगी|
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इक घाट “मनुज” पीया जल शेर बकरियों ने,
वो और ही दुनियां थी सोचो न यही होगी|