गजल
दो दिल के दरमियां गर, तकरार नहीं होती।
आंगन में फिर खड़ीं यूं, दीवार नहीं होती।।
अब तो जमाने भर की, हैं ठोंकरे उसी को।
जिसकी समय के जैसी, रफ्तार नहीं होती।।
अक्सर वो डूबते हैं, मिलते नहीं किनारे।
हाथों में जिनके बेहतर, पतवार नहीं होती।।
राहों में दूसरों के, कांटे न बिछाते तुम।
तो जिंदगी तुम्हारी, दुश्वार नहीं होती।।
बेशक, करो सियासत, पर इल्म में रहे ये।
मुद्दों के बिना सियासत, दमदार नहीं होती।।
अच्छी किसी को लगती, कहता कोई बुरा है।
भाये जो सबको ऐसी, सरकार नहीं होती।।
बेखौफ आती जातीं, ये बेटियां कहीं भीं।
गर, सोच ‘विपिन’ इतनी, बीमार नहीं होती।।
-विपिन शर्मा
रामपुर(उत्तर प्रदेश)
मोबा-9719046900