गजल
इन अधर पर रची ये लाली है
सिर से नख तक छवि निराली है
हाथ कंगन पहन लगे प्यारी
कवि ने उपमा जमीं बुलाली है
नायिका ख्याव नैन से झाँके
चाह नायक की दिल में पाली है
कल रही इन्तजार सद्य स्नाता
प्यास अब कोन सी खियाली है
व्याकुले हो गयी पिया तक कर
साथ रह कर मनी दिवाली है
श्वास से श्वास मिल रही उनकी
धड़कने हो रही मवाली है