गजल
लाख समझो मुझे तुम खिलौना कोई..
पर मुझे है शिकायत न शिकवा कोई..
याद आते हो क्यों ये पता भी नहीं..
हो हकीकत में तुम या हो सपना कोई..
छोडकर चल दिए साथ तुम इस तरह..
दोस्ती अपनी हो जैसे खिलौना कोई..
तुम मिले और मिलकर बिछड़ यूं गये..
देख मैंने लिया जैसे सपना कोई..
देखकर आपको लग रहा यूं मुझे…
आपसे यार रिश्ता पुराना कोई..
अपना समझते तो क्यों सताती हमें…
तुम न खोजो नया अब बहाना कोई…
भारत भाग्य में था मिला है वही..
है शिकायत किसी से न शिकवा कोई…
भारतेन्द्र शर्मा
15.12.2021