गजल
बेवफा जो हम है अगर, बेवफा भी हो तुम,
फिर भी मेरे प्यार का इक सिला हो तुम |
सूरज कि रौशनी से भी ज्यादा जगमग हो,
चंदा कि चांदनी से भी खुबसूरत हो तुम
औरों से क्या करे हम हिसाब आपका
जो सरे जहा मे सबसे खुबसूरत हो तुम |
बेवफा जो हम है अगर, बेवफा भी हो तुम,
फिर भी मेरे प्यार का इक सिला हो तुम
अपना दिल सभाल कर रखना संदूको मे,
न सजा कर रखना कभी इसे गुलदास्तो मे
इतना प्यारा जो दिल, प्यार करेगें सब इससे,
फिर किस्से करोगे प्यार किसे दोगे सजा तुम |
बेवफा जो हम है अगर, बेवफा भी हो तुम,
फिर भी मेरे प्यार का इक सिला हो तुम
दूर से बैठ के क्यों नूर अपना दिखाते हो,
प्यार इतना करके क्यों सबको जलाते हो
नाम जो पूछे कोई तुम्हारे मोह्हबत का,
”कुछ नहीं” कहकर शर्म से लिपट जाते हो तुम |
बेवफा जो हम है अगर, बेवफा भी हो तुम,
फिर भी मेरे प्यार का इक सिला हो तुम
जरा पास बैठे, दूर इनता क्यों रहते हो तुम
होश मे आओं ख्वाबों मे कहां रहते हो तुम,
दिनभर आपके हि खयालो मे खोये रहते है
इतना झूठ भला हमसे क्यों कहते हो तुम
बेवफा जो हम है अगर, बेवफा भी हो तुम,
फिर भी मेरे प्यार का इक सिला हो तुम |
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